हॉकी के जादूगर: मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय

हॉकी के जादूगर के नाम से मशहूर मेजर ध्यानचंद हॉकी के एक महान खिलाड़ी थे. उन्होंने अपनी टीम के साथ मिलकर भारत के लिए ओलंपिक में 3 स्वर्ण पदक (gold medal) जीते हैं. तो आइए इस महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय जानते हैं. 

क्रिकेट में जो स्थान सर डॉन ब्रैडमैन का है, फुटबॉल में जो स्थान पेले का है. ठीक वही स्थान हॉकी में मेजर ध्यानचंद का है. इन्हीं के उत्कृष्ट प्रदर्शन (outstanding performance) के कारण हॉकी हमारे देश का राष्ट्रीय खेल माना जाता है. 

इस पोस्ट में हम लोग मेजर ध्यानचंद की जीवनी जानेंगे जिसके अंतर्गत उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक घटनाएं एवं उनके प्रसिद्ध कथन (Famous Quotes) भी जानेंगे. अंत में इससे जुड़े कुछ सवाल व जवाब (FAQs) भी देखेंगे. तो इस पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें. 

संक्षिप्त में मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय 

असली नाम ध्यान सिंह
उपनाम हॉकी का जादूगर
जन्म तिथि 29 अगस्त 1905
जन्म स्थान इलाहाबाद (अब प्रयागराज)
पिता का नाम सूबेदार सोमेश्वर दत्त सिंह
माता का नाम शारदा सिंह
पत्नी का नाम जानकी देवी
लंबाई 5 फीट 7 इंच
पेशा हॉकी के खिलाड़ी
मृत्यु की तिथि 03 दिसंबर 1979
मृत्यु स्थान दिल्ली (AIIMS)
मृत्यु का कारण लिवर कैंसर
शैक्षणिक योग्यता 6ठी कक्षा
जातिराजपूत
आयु 74 वर्ष
पुरस्कार पद्म भूषण
Short Biography of Major Dhyanchand in Hindi

Major Dhyanchand Biography in Hindi

सभी के जिंदगी में बहुत सारे पहलू होते हैं वैसे ही मेजर ध्यानचंद की जिंदगी के भी थे. सभी पहलुओं को एक पोस्ट में लिखना संभव नहीं है. इसलिए  कुछ प्रमुख पहलुओं को अलग-अलग हेडिंग के अंतर्गत इस पोस्ट में लिखा जा रहा है.

मेजर ध्यानचंद का जन्म कब और कहां हुआ था?

मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 ई को उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध शहर इलाहाबाद में हुआ था. जिनका नाम अब प्रयागराज है. 

Major Dhyanchand Biography in Hindi
Major Dhyanchand

जैसा कि आपको पता होगा कि 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ था. उससे पहले 1905 में भारत पर ब्रिटिश शासन करते थे. ब्रिटिश राज में उत्तर प्रदेश का नाम संयुक्त प्रांत (united provinces) था.

मेजर ध्यानचंद के परिवार का विवरण 

जो लोग भी मेजर ध्यानचंद की संपूर्ण जानकारी जानना चाहते हैं वह सबसे पहले यह जानना चाहेंगे कि मेजर ध्यानचंद के माता-पिता का क्या नाम था? तो मेजर ध्यानचंद के माता का नाम शारदा सिंह तथा पिता का नाम सूबेदार सोमेश्वर दत्त सिंह था. 

उनके पिता सोमेश्वर दत्त सिंह ब्रिटिश फौज में सूबेदार थे तथा उनकी माता गृहणी थी. उनके दो भाई थे. बड़े भाई का नाम मूल सिंह था जो कि ब्रिटिश सरकार में हवलदार थे एवं छोटा भाई का नाम रूप सिंह था जो कि खुद एक बहुत अच्छे हॉकी के खिलाड़ी थे.

रूप सिंह और ध्यान सिंह दोनों भाइयों ने ओलंपिक सहित बहुत सारे हॉकी मैच एक साथ खेले हैं और बहुत सारे गोल भी किए हैं. 

मेजर ध्यानचंद सिंह की कोई बहन नहीं थी.

मेजर ध्यानचंद की पत्नी का नाम जानकी देवी था. जिनसे उनके 7 बेटे थे. 

उनके सभी बेटों का नाम निम्नलिखित है: 

  1. बृजमोहन 
  2. सोहन सिंह 
  3. राजकुमार 
  4. अशोक कुमार 
  5. उमेश कुमार 
  6. देवेंद्र सिंह 
  7. वीरेंद्र सिंह 

जिनमें से अशोक कुमार भी एक हॉकी के खिलाड़ी थे. 

मेजर ध्यानचंद को एक भी बेटी नहीं थी 

मेजर ध्यानचंद की शिक्षा एवं नौकरी 

मेजर ध्यानचंद सिर्फ 6ठी तक ही पढ़ाई कर पाए थे. क्योंकि उनके पिता सेना में थे जिससे उनके परिवार को स्थानांतरण (transfer) करके बार-बार एक जगह से दूसरे जगह शिफ्ट होना पड़ता था.

इसी कारणवश मेजर ध्यानचंद को 6ठी के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा. फिर 16 वर्ष की आयु में 1922 ईस्वी में दिल्ली के पहले ब्राह्मण रेजीमेंट के सेना में एक आम सिपाही के तौर पर भर्ती हुए थे.

फिर बाद में पदोन्नति (promotion ) हुई और सन 1927 ईस्वी में लांस नायक सन, 1932 ईस्वी में नायक, सन 1937 में सूबेदार, 1943 ईस्वी में लेफ्टिनेंट, सन 1948 में कप्तान और फिर बाद में उन्हें मेजर भी बना दिया गया था.

सिर्फ हॉकी के खेल की वजह से ही सेना में उनकी पदोन्नति एक साधारण सिपाही से लेकर मेजर तक हुई थी.

ध्यानचंद के हॉकी के खेल में आने की कहानी

बचपन में ध्यानचंद का किसी भी खेल के प्रति कोई खास झुकाव नहीं था. बस वे अपने दोस्तों के साथ आम खेल जो बच्चे खेलते है वे भी बचपन में वही खेल खेला करते थे.

Hockey Players | Major Dhyanchand Biography in Hindi
Hockey Players

जब ध्यान चंद 14 साल के थे तब वे अपने पिता के साथ एक हॉकी मैच देखने गए थे. जिसमें एक टीम दो गोल से हार रही थी जिसे देखकर ध्यानचंद ने अपने पिता से हारने वाली टीम की तरफ से खेलने की इजाजत मांगी.

इस बात पर उनके पिता राजी हो गए और ध्यानचंद ने उसे मैच में चार गोल किया. उनकी इस प्रदर्शन को देखकर वहां पर मौजूद सेना के अधिकारी बहुत प्रभावित हुए और फिर उन्हें सेना में शामिल होने की पेशकश भी की.

वे 16 साल की उम्र में 1922 में एक सिपाही के रूप में ब्रिटिश सेना में शामिल हो गए. फिर वहां उनको रेजीमेंट के सूबेदार मेजर भोला तिवारी ने हॉकी खेलने के लिए के लिए प्रेरित किया.

मेजर तिवारी को खुद भी यह खेल बहुत पसंद था और वह हॉकी के खिलाड़ी भी थे. फिर उनके देख-रेख में हॉकी खेलने लगे और देखते ही देखते ध्यान चंद दुनिया के सर्वश्रेष्ठ हॉकी के खिलाड़ी बन गए.

ओलंपिक में मेजर ध्यानचंद का प्रदर्शन 

ध्यानचंद को उनके गोल करने वाले कारनामों और फील्ड हॉकी में तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक (1928, 1932 और 1936) के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है. उनके दौर में भारत इस खेल में पूरी दुनिया पर भारी था.

एम्सटर्डम ओलंपिक वो पहला ओलंपिक था जिसमें भारतीय टीम पहली बार भाग लिया था. इसमें ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, डेनमार्क तथा स्विट्जरलैंड को हराकर फाइनल मैच 26 मई 1928 को हॉलैंड के साथ हुआ था.

फाइनल में भारतीय हॉकी टीम ने हॉलैंड को 3-0 से हराकर विश्व भर में हॉकी के चैंपियन बन गए और स्वर्ण पदक भी जीते. इस तीन गोल में से भी दो गोल तो सिर्फ ध्यानचंद का ही था. 

दूसरा ओलंपिक 1932 में लॉस एंजेलिस में हुआ. जिसका फाइनल अमेरिका के साथ हुआ था. इसमें अमेरिका भारत से 24-1 से हारा था. उनका यह रिकॉर्ड बहुत दिनों तक बरकरार रहा.

जैसा कि ओलंपिक हर 4 साल पर होता है तो तीसरा ओलंपिक 1936 में बर्लिन में हुआ. इसमें हंगरी, जापान और फ्रांस को हराने के बाद फाइनल मुकाबला 15 अगस्त को जर्मन के साथ हुआ. इसमें भारतीय खिलाड़ी ने जर्मन टीम को 8-1 से हरा दिया था.

ओलंपिक के अलावा मेजर ध्यानचंद ने बहुत सारे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मैच भी खेले हैं. उन्होंने अपने पूरे करियर में 1000 से भी ज्यादा गोल किए हैं जिसमें लगभग आधा अंतरराष्ट्रीय गोल ही है.

प्रथम कोटि की हाकी से उन्होंने अप्रैल, 1949 ई. में संन्यास ले लिया.

प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से उन्हें 1956 में सम्मानित किया गया.

मेजर ध्यानचंद के भारतीय हॉकी में योगदान के लिए ही उनके जन्मदिवस पर प्रत्येक 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है.

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मेजर ध्यानचंद की मृत्यु

लीवर कैंसर की वजह से मेजर ध्यानचंद की मौत 03 दिसंबर 1979 को दिल्ली के एम्स अस्पताल में हो गई.

मेजर ध्यानचंद सिंह के प्रसिद्ध कथन

नीचे उनके 3 प्रसिद्ध कथन दिया जा रहा है. जो खेल भावना के साथ उनके देश के प्रति प्रेम को भी दर्शाता है.

मुझे आगे बढ़ाना मेरे देश का कर्तव्य नहीं है. मेरा कर्तव्य है कि मैं अपने देश को आगे बढ़ाऊं.

~ मेजर ध्यानचंद

जिस दिन मेरी मौत हो जाएगी उस दिन पूरी दुनिया रोएगी, और जिस दिन ये पूरी दुनिया रोएगी उस दिन मेरा भारत नहीं रोएगा.

~ मेजर ध्यानचंद

भारत में हॉकी खत्म हो चुकी है, अब हमारे लड़के सिर्फ खाना चाहते हैं, वो काम करना नहीं चाहते.

~ मेजर ध्यानचंद

मेजर ध्यानचंद के जीवन से संबंधित प्रश्न (FAQs)

मेजर ध्यानचंद के आत्मकथा का क्या नाम है?

मेजर ध्यानचंद के आत्मकथा का नाम “गोल” है जोकि वर्ष 1952 में प्रकाशित हुआ था.

क्या मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न मिला था?

नहीं, मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न नहीं मिला है. हालांकि उन्हें भारत रत्न देने की बात कई बार की गई है.

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